लेख-निबंध >> दहशत में दुनिया दहशत में दुनियासर्वेश तिवारी
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कहानी अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
ऐसा नहीं है कि 11 सितम्बर की घटना के पहले आतंकवाद नहीं था, यह ज़रूर था
कि अमेरिका जैसे ताकतवर देश को आतंकवादियों ने अपना निशाना नहीं बनाया था।
यह पुस्तक एक कोशिश है उन आतंकवादी गुटों की पहचान की जो मानवता के लिए
खतरा बनते जा रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर आतंकवादी गुट दहशतगर्दी को
बढ़ावा देने वाले मुट्ठी भर मुल्लों के हाथ की कठपुतली बन चुके हैं, और
इसका सबसे अधिक शिकार बन रहे हैं भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष, प्रजातान्त्रिक
देशों में रहने वाले लोग।
आभार
आतंकवाद से आज दुनिया के लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। ऐसे में सभी जगहों की
सूचनाएँ और साक्ष्यों को बगैर किसी मदद के संकलित कर किताब लिखना बेहद
मुश्किल काम है। मैं उन मित्रों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ,
जिन्होंने न सिर्फ इसे लिखने में मेरी मदद की बल्कि प्रोत्साहित भी किया।
खासकर पवन कुमार सिंह का जिनसे मुझे इस किताब को लिखने की प्रेरणा मिली।
इसे लिखते समय हमारे ज़ी न्यूज़ में सहयोगी लोकेश कुमार और दीप उपाध्याय ने हर सम्भव मदद की। उनके सुझावों को इस हद तक शामिल कर लिया गया कि उन्हें इनमें से कुछ पाठकों का सह लेखक भी कहा जा सकता है।
ज़ी न्यूज़ की लन्दन में संवाददाता अनीता आनन्द और शारजाह रेडियो में वरिष्ठ समाचार सम्पादक मोहम्मद नूर बख्श के साथ मैंने हमेशा विचार-विमर्श किया है। और उनसे काफी लाभान्वित हुआ हूँ। इस पुस्तक के कुछ पाठ पर उनके विचारों की छाप है।
आतंकवाद से जुड़े संकलनों और सूचनाओं को एक पुस्तक का रूप देने में मेरे पुराने एसोसिएट प्रेस (ए.पी.) के संवाददाता नीलेश मिश्रा और बी.बी.सी. के लन्दन में संवाददाता आकाश सोनी ने मेरी बड़ी मदद की है।
अमेरिकी दूतावास में सूचना अधिकारी शोबिता मोहन और डाक्यूमेन्टेशन यूनिट के प्रमुख अशोक के. समान्ता का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। इनकी सहायता के बिना तालिबान के खिलाफ अमेरिकी सैन्य अभियान की सिलसिलेवार जानकारी और महत्वपूर्ण चित्रों को हासिल करना सम्भव नहीं था।
विशेष आभारी हूँ आत्माराम एंड संस के सुधीर पुरी का जिनकी मदद से यह पुस्तक आपके सामने है।
इसे लिखते समय हमारे ज़ी न्यूज़ में सहयोगी लोकेश कुमार और दीप उपाध्याय ने हर सम्भव मदद की। उनके सुझावों को इस हद तक शामिल कर लिया गया कि उन्हें इनमें से कुछ पाठकों का सह लेखक भी कहा जा सकता है।
ज़ी न्यूज़ की लन्दन में संवाददाता अनीता आनन्द और शारजाह रेडियो में वरिष्ठ समाचार सम्पादक मोहम्मद नूर बख्श के साथ मैंने हमेशा विचार-विमर्श किया है। और उनसे काफी लाभान्वित हुआ हूँ। इस पुस्तक के कुछ पाठ पर उनके विचारों की छाप है।
आतंकवाद से जुड़े संकलनों और सूचनाओं को एक पुस्तक का रूप देने में मेरे पुराने एसोसिएट प्रेस (ए.पी.) के संवाददाता नीलेश मिश्रा और बी.बी.सी. के लन्दन में संवाददाता आकाश सोनी ने मेरी बड़ी मदद की है।
अमेरिकी दूतावास में सूचना अधिकारी शोबिता मोहन और डाक्यूमेन्टेशन यूनिट के प्रमुख अशोक के. समान्ता का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। इनकी सहायता के बिना तालिबान के खिलाफ अमेरिकी सैन्य अभियान की सिलसिलेवार जानकारी और महत्वपूर्ण चित्रों को हासिल करना सम्भव नहीं था।
विशेष आभारी हूँ आत्माराम एंड संस के सुधीर पुरी का जिनकी मदद से यह पुस्तक आपके सामने है।
दहशत में दुनिया
1 अक्टूबर, 2001,
जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 38 लोग मारे गए। कश्मीर की सत्ता के केन्द्र पर हुए हमले का सीधा असर भारत-पाकिस्तान सीमा और नियन्त्रण रेखा पर दिखा। सरहद पर तनाव बढ़ा और गोलीबारी भी। सीमापार से गोलीबारी का जवाब देते हुए भारत की फौज ने पाकिस्तान की ग्यारह चौकियों को निशाना बनाया। पाकिस्तान ने अपनी फौज को हाई अलर्ट कर दिया। अमेरिका ने दखलन्दाज़ी की कोशिश की, विदेश मन्त्री कॉलिन पावेल ने भारत और पाकिस्तान का दौरा किया और दोनों मुल्कों से संयम बरतने की अपील की। सरहद पर से जंग के बादल तो छँट गए मगर तनाव कम नहीं हुआ।
दो महीने बाद ही एक और वाकया हुआ, 13 दिसम्बर, 2001 पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने संसद पर हमला बोल दिया...14 लोग मारे गए और 22 जख्मी हुए। भारत के संयम का बाँध टूटा...
भारत ने पाकिस्तान से अपना उच्चायुक्त वापस बुला लिया।
...सीमा पर फौजियों की तादाद दोगुनी कर दी और हाई अलर्ट का ऐलान कर दिया।
...पाकिस्तान को जाने वाली उड़ानों पर रोक लगा दी और भारत की हवाई सीमा पर पाकिस्तानी विमानों की उड़ान पर भी पाबन्दी लगा दी गई...दोनों मुल्कों के बीच रेल और बस सम्पर्क भी बन्द हो गया।
भारत के ये सभी कदम पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की तरफ इशारा कर रहे थे...सरहद पर तनाव बढ़ता गया-अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी ने चिन्ता जताई आतंकवादियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए परवेज़ मुशर्रफ पर दबाव बढ़ने लगा...आख़िरकार 12 जनवरी को मुशर्रफ ने भरोसा दिलाया कि वो पाकिस्तान की ज़मीन से आतंकवादी कार्रवाई नहीं होने देंगे।
मगर मुशर्रफ ये वादा निभा नहीं पाए। पाकिस्तानी फौज और आई.एस.आई. की शह पर आतंकवादी सरहद पार कर भारत आते रहे।
30 मार्च 2002 को आतंकवादियों का एक आत्मघाती दस्ता जम्मू के रघुनाथ मन्दिर में घुस गया...8 लोग इस हमले में मारे गए।
14 मई, 2002, ए.के.47, ए.के.56 मशीनगनों से लैस तीन आतंकवादियों ने पहले मनाली से जम्मू जा रही एक बस को अगवा कर आठ यात्रियों को मौत के घाट उतारा। उसके बाद कालूचक कैण्ट इलाके में अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर 24 लोगों का बेरहमी से कत्ल किया...मारे गए लोगों में ज़्यादातर महिलाएँ और फौजियों के बच्चे थे।
अब धीरे धीरे दुनिया के बड़े नेताओं को भरोसा होने लगा है कि कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में है। ये बात और है कि तमाम दबावों की वजह से पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई करना उनके लिए फिलहाल मुमकिन नहीं है।
मई के दूसरे हफ्ते में अमेरिका की सहायक विदेश मन्त्री क्रिस्टीना रोक्का सिर्फ इस मकसद से दोनों देशों के दौरे पर आई थीं कि शायद बातचीत फिर शुरू कराई जा सके। पर उनके भारत में रहते ही हुए कालूचक की वारदात ने सबकुछ बदल दिया और उन्हें पाकिस्तान को लेकर भारत के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। भारतीय नेताओं ने उन्हें साफ कह दिया कि अब बातचीत तो दूर की बात है भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने में वक्त नहीं गँवाएगा। भारत के दवाब का नतीजा था कि क्रिस्टीना रोक्का ने पाकिस्तान जाकर परवेज़ मुशर्रफ को सीमा पार आतंकवाद पर लगाम लगाने की हिदायत दी। यूरोपीय यूनियन ने पहले भारत को ही संयम बरतने की सलाह दी। इसके बाद यूनियन के विदेशी मामलों के कमिश्नर क्रिस पैटन पहले पाकिस्तान और फिर भारत पहुँचे। भारत पहुँचकर उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ मुहिम को पाकिस्तान अपनी मनमर्जी से जब चाहे चालू या बन्द नहीं कर सकता। उसे आतंकवाद रोकने के लिए ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे।
अब बारी थी ब्रिटेन की। उसके विदेश मन्त्री जैक स्ट्रॉ भारत-पाक का झगड़ा टालने के लिए पहले पाकिस्तान पहुँचे। पाकिस्तान में रहते हुए उन्होंने पाकिस्तानी शासक जनरल परवेज़ मुशर्रफ की आलोचना की। मुशर्रफ को तब और झटका लगा जब स्ट्रॉ ने कश्मीर के आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई मानने से इनकार कर दिया। उधर जापान भी हरकत में आया और वहाँ के उप विदेश मन्त्री सेकेन सुगुइरा ने उप महाद्वीप का दौरा किया और पाकिस्तान से घुसपैठ रोकने की अपील की। इसी बीच रूस के उप विदेश मन्त्री ने पाकिस्तान जाकर मुशर्रफ को समझाया कि वो अब आतंकवाद पूरी तरह खत्म करने में जुट जाएँ। अमेरिका ने भी अपने उप विदेश मन्त्री रिचर्ड आर्मीटेज और उसके बाद रक्षामन्त्री डोनाल श्म्सफेल्ड को भारत और पाकिस्तान भेजा। इससे पहले अमेरिकी रक्षामन्त्री कॉलिन पावेल ने पाकिस्तान से साफ-साफ कह दिया था कि सीमापार से घुसपैठ हमेशा के लिए खत्म की जानी चाहिए। इसे भारत की कूटनीतिक सफलता ही कहा जाएगा कि करीब-करीब सभी ने पहले पाकिस्तान को ही टकराव का रास्ता छोड़ने की सलाह दी। पर पाकिस्तान का रुख नहीं बदला।
दुनिया के कड़े तेवर अपनाने से बौखलाए पाकिस्तान ने पहले तो एक के बाद एक मिसाइल परीक्षण कर डाले लेकिन जब भारत ने कोई तवज्जो नहीं दी, तो अपनी हताशा को छिपाने के लिए मुशर्रफ को फिर टेलीविज़न पर आना पड़ा। मौका ज़रूर नया था पर मजमून पुराना। जिसमें आतंकवाद की निन्दा तो थी, लेकिन कश्मीर की रट नहीं छोड़ी। भारत ने एक और कूटनीतिक वार करते हुए जनरल परवेज़ मुशर्रफ के भाषण पर बड़ी आम-सी प्रतिक्रिया दी। सरकार ने उसे खतरनाक और निराशाजनक बताया। भारत ने दोहराया कि मुशर्रफ की बातों पर भरोसा करना नामुमकिन है।
भाषण के ज़रिये मुशर्रफ को एक फायदा ज़रूर हुआ कि उन्हें कश्मीर के आतंकवादियों पर कार्रवाई के नाम पर कुछ वक्त और मिल गया। ये समय उन्हें दुनिया के कुछ बड़े नेताओं ने दिलाया। ऐसी ख़बरें हैं कि मुशर्रफ ने अपने कब्जे वाले कश्मीर में तैनात फौज से फिलहाल घुसपैठ रुकवाने के लिए कहा है। पर भारत अब मुशर्रफ के हर वादे, हर फैसले पर अमल होता देखना चाहता है और इस बार भी वो ज़मीनी हकीकत जानने के बाद ही अगला कदम उठाएगा। कश्मीर का जिक्र यहाँ इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि वहाँ 30 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। लाखों हिन्दुओं ने पलायन किया है। आज भी करीब 140 आतंकवादी गुट भारत में सक्रिय हैं, जिनमें से करीब 50 गुट जेहाद के नाम पर कश्मीर में दहशतगर्दी का खेल रचने में लगे हैं। हालाँकि यही हाल पूर्वोत्तर राज्यों का भी है। करीब 40 छोटे-बड़े आतंकवादी संगठन हर रोज बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की हर आशंका कश्मीर से ही उठती रही है। यहाँ पाकिस्तान ने 12 साल से प्रॉक्सी वार छेड़ रखा है। लेकिन भारत ने हमेशा पारम्परिक युद्ध से लड़ने की तैयारी की है। यही वजह है कि प्रॉक्सी वार से निपटने में भारत अक्सर कमज़ोर पड़ जाता है। दोनों देशों के बीच बड़ी जंग के परमाणु युद्ध में तब्दील होने का ख़तरा भी कम नहीं है। पाकिस्तान पारम्परिक हथियारों के मामले में भारत से काफी कमज़ोर है ऐसे में बड़ी लड़ाई के मौके पर पाकिस्तान के न्यूक्लियर बम इस्तेमाल करने की सम्भावना बढ़ जाती है।
बहरहाल यह जानना भी प्रसंगवश ज़रूरी है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत यदि पाकिस्तान से जंग करता है तो वह युद्ध के मैदान में कितना ताकतवर साबित होगा।
भारत के पास संख्या के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसके तीन अंग हैं-थल सेना, वायु सेना और नौ सेना। कुछ फौजी हैं तेरह लाख तीन हज़ार इसके अलावा पाँच लाख पैंतीस हज़ार रिज़र्व सैनिक भी हैं। सबसे ज़्यादा तादाद है थल सेना के फौजियों की...यहाँ कोई ग्यारह लाख सक्रिय फौजी हैं। थल सेना में छत्तीस कॉम्बेट डिवीजन हैं और इस सेना की जान हैं टैंक। अभी करीब साड़े तीन हज़ार टैंक हैं जिसमें टी 90 सबसे नए हैं। एक टी 90 में तीन फौजी सवार हो सकते हैं और इसकी अधिकतम रफ्तार है 65 किलोमीटर प्रति घंटा।
भारत की थल सेना का भरोसेमन्द साथी अर्जुन टैंक भी रहा है..120 एमएम रायफल गन से लैस ये टैंक एक घंटे में 72 किलोमीटर की दूसरी तय कर सकते हैं।
टी 72 एम 1 टैंकों की तादद सबसे ज़्यादा है और रफ्तार के मामले में भी ये सबसे आगे हैं। ये एक घंटे में 80 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं। थल सेना के पास नई तकनीक से लैस कई तोपें भी हैं।
155 एम.एम.एफ.एच. 77 बी हाविट्जर यानी बोफोर्स तोपें कारगिल में सबसे ज़्यादा काम आई थीं। ये 24 से 30 किलोमीटर तक वार कर सकती हैं।
130 एम.एम.एम. 46 फील्ड गन की रेंज 27 किलोमीटर से भी ज़्यादा है। रॉकेट लांचरों में 122 एम.एम.बी.एम. 21 एम.आर.एल. भी शामिल हैं जिनकी रेंज 11 से 20 किलोमीटर तक है।
ये सब तो है ही..लेकिन भारत की सबसे बड़ी ताकत है मिसाइल क्षमता। ज़मीन पर वार करने वाली मिसाइल पृथ्वी से अधिकतम 1000 किलोग्राम का विस्फोटक ले जा सकती है। इसकी अधितम मारक क्षमता है 500 किलोमीटर। खास बात यह है कि दुश्मन के रडार भी इसका पता नहीं लगा पाते।
..अग्नि मिसाइल की मारक क्षमता 1500 से 2580 किलोमीटर तक है। ये 1000 किलोग्राम तक का विस्फोटक दुश्मन के इलाके में गिरा सकती है। ये दोनों मिसाइलें परमाणु बम भी ले जा सकती हैं।
वायुसेना में 1 लाख 50 हज़ार सक्रिय फौजी हैं। एयरफोर्स के पास आधुनिक लड़ाकू विमान हैं...हेलीकॉप्टर हैं और परिवहन विमान भी। लड़ाकू विमानों में सबसे नए हैं रूस से आई सुखोई।...ध्वनि से दुगुनी रफ्तार से उड़ने वाले ये विमान हवा में ही ईंधन भरा सकते हैं।
...रूस से ही आए मिग 29 भी ध्वनि से दो गुनी गति से उड़ सकते हैं ये विमान 30 एम.एम. सिंगल बैरल गन से लैस हैं।
...फ्रांस से आए मिराज 2000 की रफ्तार भी ध्वनि से दुगुनी है इनमें 125 राउण्ड वाली दो एम.एम. गन लगी हुई है।
...एयरफोर्स के पास हमलावर हेलीकॉप्टर भी हैं...एम.आई. 25/35 हेलीकॉप्टर में चार बैरल वाली 12.7 एम.एम. मशीनगन के साथ चार टैंक भेदी मिसाइलें भी लगाई जा सकती हैं। एम.आई.26 हेलीकॉप्टर 56 टन तक का माल ढो सकते हैं।
भारतीय सेना का तीसरा और सबसे छोटा अंग है नौसेना जिसमें 55 हज़ार सक्रिय सैनिक हैं।
नौसेना के पास विराट जैसा एयरक्राफ्ट कैरियर यानी विमान वाहक पोत है। इसमें 30 लड़ाकू विमान और 7 हेलीकॉप्टर आ सकते हैं..विराट की रफ्तार है 28 किला नॉट।
डिस्ट्रॉयर शिप राजपूत में 11 हेलीकॉप्टर हैं और ये टारपीडो, मिसाइल और मशीनगनों से लैस हैं।
नेवी के पास किलो क्लास जैसी पनडुब्बियाँ भी हैं जो पानी की सतह पर 10 नॉट और पानी के नीचे 20 नॉट की रफ्तार से दौड़ सकती हैं। मिसाइल और टारपीडो होने के अलावा इन पनडुब्बियों में समुद्र में बारूदी सुरंगें बिछाने की भी क्षमता है।
भारत के पास 13 लाख सक्रिय सैनिक हैं तो पाकिस्तान के पास सिर्फ 6 लाख। भारत की फौज बड़ी है तो इसका रक्षा खर्च भी बड़ा है। भारत का रक्षा बजट 13.6 अरब डॉलर है जब कि पाकिस्तान का बजट है 3.3 अरब डॉलर। भारत के साढ़े तीन हज़ार टैंकों के मुकाबले पाकिस्तान के पास 2,285 टैंक हैं। भारत के पास 36 कॉम्बेट डिवीजन हैं तो पाकिस्तान के पास 22। एयरफोर्स के मामले में भी भारत पाकिस्तान से काफी आगे है। पाकिस्तान के 40 हज़ार वायुसैनिकों के मुकाबले भारत के पास एक लाख चालीस हज़ार वायुसैनिक हैं। भारत के पास 730 लड़ाकू विमान हैं तो पाकिस्तान के पास आधे से भी कम यानी सिर्फ 353। लड़ाकू हेलीकॉप्टर तो पाकिस्तान के पास हैं ही नहीं जबकि भारत के पास 30 हथियारबन्द हेलीकॉप्टर हैं।
पाकिस्तान के नेवी में 22 हज़ार जवान हैं जबकि भारत के पास 55 हज़ार से भी ज़्यादा नौ सैनिक हैं। पाकिस्तान के पास एक भी एयरक्राफ्ट कैरियर नहीं है। भारत की 19 पनडुब्बियों के मुकाबले पाकिस्तान के पास 10 पनडुब्बियाँ हैं।
डिस्ट्रॉयर और फ्रिगेट्स के मामलें में दोनों देशों की ताकत लगभग बराबर है। भारत के पास 8 डिस्ट्रॉयर हैं और पाकिस्तान के पास 7।
पाकिस्तान के 8 फिग्रेट्स के मुकाबले भारत के पास 9 फिग्रेट्स हैं।
लेकिन मिसाइलों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच काँटे की टक्कर है। भारत ने अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रम के साथ मिसाइलें बनाई तो पाकिस्तान ने सीधे चीन और नार्थ कोरिया से मिसाइलें खरीदी। पाकिस्तान के पास 2300 किलोमीटर तक मार करने वाली गौरी मिसाइल है तो भारत के पास 1500 किलोमीटर रेंज वाली अग्नि। पाकिस्तान के पास 600 किलोमीटर तक मार करने वाली शाहीन मिसाइल हैं वहीं भारत के पास 250 किलोमीटर तक विस्फोटक गिराने वाली पृथ्वी मिसाइल।
पारम्परिक हथियारों के अलावा दोनों मुल्कों में टोही उपकरणों की भी जबरदस्त होड़ है। बगैर पायलट वाले विमान, आधुनिक रडार सिस्टम और सेटेलाइट तकनीक पर भारत और पाकिस्तान बड़े पैमाने पर खर्च कर रहे हैं। हालाँकि इनके बारे में जानकारी अक्सर गुप्त ही रखी जाती है। मगर यह जिक्र करना भी ज़रूरी है कि भारत के सामने एक बड़े युद्ध से ज़्यादा आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदात ज़्यादा नुकसान पहुँचा सकती हैं। इन आतंकवादी हरकतों से न तो टी 90 टैंक निपट सकते हैं और न ही अग्नि मिसाइल। भारत के खिलाफ जंग छोड़ चुके आतंकवादियों से निपटने के लिए न सिर्फ खास फौजी इन्तजाम की ज़रूरत है बल्कि दूसरे देशों को भी साथ लेकर चलने की ज़रूरत है।
वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने ऐलान किया था कि अब उसकी लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है और जो उसका साथ नहीं देगा उसे आतंकवाद का हिमायती माना जाएगा। अमेरिका ने बिना किसी से कुछ पूछे फैसला लिया, दुश्मन तय किया, निशाने बनाए और अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया। न कोई कूटनीतिक कवायद, न माफी की गुंजाइश और न किसी विरोध की फिक्र। सच तो यह है कि अमेरिकी हितों के आगे डिप्लोमेसी की कोई जगह नहीं। दूसरी ओर इजरायल बनाम फिलिस्तीन का उदाहरण हमारे सामने है जहाँ हम आत्मघाती हमले के बाद इजराइली टैंक फिलिस्तीनी इलाकों में घुसकर कहर ढाते हैं और डिप्लोमेसी ठंडे बस्ते में चली जाती है। अमेरिका और ब्रिटेन की नज़र में वहाँ फिलिस्तानी आतंकवाद है पर पाकिस्तान के आतंकवाद को लगातार नज़रअन्दाज किया जाता रहा है।
सवाल उठता है कि ऐसा क्यों है कि भारत और पाकिस्तान के तनाव को सिर्फ पुरानी रंजिश बताकर टाल दिया जाता है। आज भारत दुनिया से जिस तरह का समर्थन जुटाने की सफल कोशिश में हैं उस पर दुनिया ने क्यों नहीं सोचा, जब कश्मीर में सीमापार से दहशतगर्द घुसकर हिंसा और नरसंहार को अंजाम दे रहे थे।
आतंकवाद से आज दुनिया का लगभग हर देश प्रभावित है। 7 अक्टूबर, 2001 की रात जब अफगानिस्तान में आसमान से शोले बरसे तब शायद लोगों को लगा कि आतंकवाद के खिलाफ छिड़ी ये जंग इसके सफाए के बाद ही रुकेगी, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। अन्तर्राट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन या उसके संगठन अलकायदा के सदस्यों की खोज तो जारी है मगर आतंकवादियों के हौसले भी पस्त नहीं हुए हैं। लादेन ने अपने ताजा बयान में कहा है कि अमेरिका अगर तालिबान से समझौता कर ले तो बात बन सकती है, वरना पूरी दूनिया को भारी तबाही लिए तैयार रहना चाहिए।
उधर अमेरिका के एक समाचार एजेंसी को ऐसा वीडियो मिला है जिसमें उग्रवादी संगठन हमास के कार्यकर्ताओं को आत्मघाती हमले का प्रशिक्षण लेते दिखाया गया है। हमास पश्चिम एशिया का खतरनाक आतंकवादी संगठन है जो इजरायल में कई आत्मघाती हमले कर चुका है। इस वीडियो की शुरुआत में उस्ताद अपने शार्गिदों को यह बताता है कि इजरायल पर हमला करने वालों को जन्नत मिलेगी। इसमें आगे बताया गया है कि आत्मघाती हमले के लिए विस्फोटक कैसे तैयार किया जाए। इस विस्फोट के लिए लकड़ी का खोल, ताँबे के तार, टेस्ट ट्यूब नट और बॉल बियरिंग जैसे सामान स्थानीय तौर पर उपलब्ध कराए गए हैं। वहीं मुख्य विस्फोटक ट्राइ नाइट्रो ग्लिसरीन चोरी या तस्करी से मँगाया जाता है।
इजरायल की खुफिया एजैंसियों के मुताबिक हमास के पास बम बनाने की उम्दा तकनीक है। हमास के वीडियो में यह भी बताया गया है कि आत्मघाती हमलों के निशाने कौन हो सकते हैं। इस वीडियो टेप से यह बात साफ हो गई है कि आतंकवादी आज भी उतने ही शक्तिशाली और सक्रिय हैं, जितना तालिबान पर हुए अमेरिकी हमले के पहले थे।
ऐसा नहीं है कि 11 सितम्बर की घटना के पहले आतंकवाद नहीं था, यह ज़रूर था कि अमेरिका जैसे ताकतवर देश को आतंकवादियों ने अपना निशाना नहीं बनाया था। यह पुस्तक एक कोशिश है उन आतंकवादियों गुटों की पहचान की जो मानवता के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर आतंकवादी गुट दहशतगर्दी को बढ़ावा देने वाले मुट्ठीभर मुल्लों के हाथ की कठपुतली बन चुके हैं, और इसका सबसे अधिक शिकार बन रहे हैं भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक देशों में रहने वाले लोग।
जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला किया। 38 लोग मारे गए। कश्मीर की सत्ता के केन्द्र पर हुए हमले का सीधा असर भारत-पाकिस्तान सीमा और नियन्त्रण रेखा पर दिखा। सरहद पर तनाव बढ़ा और गोलीबारी भी। सीमापार से गोलीबारी का जवाब देते हुए भारत की फौज ने पाकिस्तान की ग्यारह चौकियों को निशाना बनाया। पाकिस्तान ने अपनी फौज को हाई अलर्ट कर दिया। अमेरिका ने दखलन्दाज़ी की कोशिश की, विदेश मन्त्री कॉलिन पावेल ने भारत और पाकिस्तान का दौरा किया और दोनों मुल्कों से संयम बरतने की अपील की। सरहद पर से जंग के बादल तो छँट गए मगर तनाव कम नहीं हुआ।
दो महीने बाद ही एक और वाकया हुआ, 13 दिसम्बर, 2001 पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने संसद पर हमला बोल दिया...14 लोग मारे गए और 22 जख्मी हुए। भारत के संयम का बाँध टूटा...
भारत ने पाकिस्तान से अपना उच्चायुक्त वापस बुला लिया।
...सीमा पर फौजियों की तादाद दोगुनी कर दी और हाई अलर्ट का ऐलान कर दिया।
...पाकिस्तान को जाने वाली उड़ानों पर रोक लगा दी और भारत की हवाई सीमा पर पाकिस्तानी विमानों की उड़ान पर भी पाबन्दी लगा दी गई...दोनों मुल्कों के बीच रेल और बस सम्पर्क भी बन्द हो गया।
भारत के ये सभी कदम पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की तरफ इशारा कर रहे थे...सरहद पर तनाव बढ़ता गया-अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी ने चिन्ता जताई आतंकवादियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए परवेज़ मुशर्रफ पर दबाव बढ़ने लगा...आख़िरकार 12 जनवरी को मुशर्रफ ने भरोसा दिलाया कि वो पाकिस्तान की ज़मीन से आतंकवादी कार्रवाई नहीं होने देंगे।
मगर मुशर्रफ ये वादा निभा नहीं पाए। पाकिस्तानी फौज और आई.एस.आई. की शह पर आतंकवादी सरहद पार कर भारत आते रहे।
30 मार्च 2002 को आतंकवादियों का एक आत्मघाती दस्ता जम्मू के रघुनाथ मन्दिर में घुस गया...8 लोग इस हमले में मारे गए।
14 मई, 2002, ए.के.47, ए.के.56 मशीनगनों से लैस तीन आतंकवादियों ने पहले मनाली से जम्मू जा रही एक बस को अगवा कर आठ यात्रियों को मौत के घाट उतारा। उसके बाद कालूचक कैण्ट इलाके में अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर 24 लोगों का बेरहमी से कत्ल किया...मारे गए लोगों में ज़्यादातर महिलाएँ और फौजियों के बच्चे थे।
अब धीरे धीरे दुनिया के बड़े नेताओं को भरोसा होने लगा है कि कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान में है। ये बात और है कि तमाम दबावों की वजह से पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई करना उनके लिए फिलहाल मुमकिन नहीं है।
मई के दूसरे हफ्ते में अमेरिका की सहायक विदेश मन्त्री क्रिस्टीना रोक्का सिर्फ इस मकसद से दोनों देशों के दौरे पर आई थीं कि शायद बातचीत फिर शुरू कराई जा सके। पर उनके भारत में रहते ही हुए कालूचक की वारदात ने सबकुछ बदल दिया और उन्हें पाकिस्तान को लेकर भारत के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा। भारतीय नेताओं ने उन्हें साफ कह दिया कि अब बातचीत तो दूर की बात है भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने में वक्त नहीं गँवाएगा। भारत के दवाब का नतीजा था कि क्रिस्टीना रोक्का ने पाकिस्तान जाकर परवेज़ मुशर्रफ को सीमा पार आतंकवाद पर लगाम लगाने की हिदायत दी। यूरोपीय यूनियन ने पहले भारत को ही संयम बरतने की सलाह दी। इसके बाद यूनियन के विदेशी मामलों के कमिश्नर क्रिस पैटन पहले पाकिस्तान और फिर भारत पहुँचे। भारत पहुँचकर उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ मुहिम को पाकिस्तान अपनी मनमर्जी से जब चाहे चालू या बन्द नहीं कर सकता। उसे आतंकवाद रोकने के लिए ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे।
अब बारी थी ब्रिटेन की। उसके विदेश मन्त्री जैक स्ट्रॉ भारत-पाक का झगड़ा टालने के लिए पहले पाकिस्तान पहुँचे। पाकिस्तान में रहते हुए उन्होंने पाकिस्तानी शासक जनरल परवेज़ मुशर्रफ की आलोचना की। मुशर्रफ को तब और झटका लगा जब स्ट्रॉ ने कश्मीर के आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई मानने से इनकार कर दिया। उधर जापान भी हरकत में आया और वहाँ के उप विदेश मन्त्री सेकेन सुगुइरा ने उप महाद्वीप का दौरा किया और पाकिस्तान से घुसपैठ रोकने की अपील की। इसी बीच रूस के उप विदेश मन्त्री ने पाकिस्तान जाकर मुशर्रफ को समझाया कि वो अब आतंकवाद पूरी तरह खत्म करने में जुट जाएँ। अमेरिका ने भी अपने उप विदेश मन्त्री रिचर्ड आर्मीटेज और उसके बाद रक्षामन्त्री डोनाल श्म्सफेल्ड को भारत और पाकिस्तान भेजा। इससे पहले अमेरिकी रक्षामन्त्री कॉलिन पावेल ने पाकिस्तान से साफ-साफ कह दिया था कि सीमापार से घुसपैठ हमेशा के लिए खत्म की जानी चाहिए। इसे भारत की कूटनीतिक सफलता ही कहा जाएगा कि करीब-करीब सभी ने पहले पाकिस्तान को ही टकराव का रास्ता छोड़ने की सलाह दी। पर पाकिस्तान का रुख नहीं बदला।
दुनिया के कड़े तेवर अपनाने से बौखलाए पाकिस्तान ने पहले तो एक के बाद एक मिसाइल परीक्षण कर डाले लेकिन जब भारत ने कोई तवज्जो नहीं दी, तो अपनी हताशा को छिपाने के लिए मुशर्रफ को फिर टेलीविज़न पर आना पड़ा। मौका ज़रूर नया था पर मजमून पुराना। जिसमें आतंकवाद की निन्दा तो थी, लेकिन कश्मीर की रट नहीं छोड़ी। भारत ने एक और कूटनीतिक वार करते हुए जनरल परवेज़ मुशर्रफ के भाषण पर बड़ी आम-सी प्रतिक्रिया दी। सरकार ने उसे खतरनाक और निराशाजनक बताया। भारत ने दोहराया कि मुशर्रफ की बातों पर भरोसा करना नामुमकिन है।
भाषण के ज़रिये मुशर्रफ को एक फायदा ज़रूर हुआ कि उन्हें कश्मीर के आतंकवादियों पर कार्रवाई के नाम पर कुछ वक्त और मिल गया। ये समय उन्हें दुनिया के कुछ बड़े नेताओं ने दिलाया। ऐसी ख़बरें हैं कि मुशर्रफ ने अपने कब्जे वाले कश्मीर में तैनात फौज से फिलहाल घुसपैठ रुकवाने के लिए कहा है। पर भारत अब मुशर्रफ के हर वादे, हर फैसले पर अमल होता देखना चाहता है और इस बार भी वो ज़मीनी हकीकत जानने के बाद ही अगला कदम उठाएगा। कश्मीर का जिक्र यहाँ इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि वहाँ 30 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। लाखों हिन्दुओं ने पलायन किया है। आज भी करीब 140 आतंकवादी गुट भारत में सक्रिय हैं, जिनमें से करीब 50 गुट जेहाद के नाम पर कश्मीर में दहशतगर्दी का खेल रचने में लगे हैं। हालाँकि यही हाल पूर्वोत्तर राज्यों का भी है। करीब 40 छोटे-बड़े आतंकवादी संगठन हर रोज बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की हर आशंका कश्मीर से ही उठती रही है। यहाँ पाकिस्तान ने 12 साल से प्रॉक्सी वार छेड़ रखा है। लेकिन भारत ने हमेशा पारम्परिक युद्ध से लड़ने की तैयारी की है। यही वजह है कि प्रॉक्सी वार से निपटने में भारत अक्सर कमज़ोर पड़ जाता है। दोनों देशों के बीच बड़ी जंग के परमाणु युद्ध में तब्दील होने का ख़तरा भी कम नहीं है। पाकिस्तान पारम्परिक हथियारों के मामले में भारत से काफी कमज़ोर है ऐसे में बड़ी लड़ाई के मौके पर पाकिस्तान के न्यूक्लियर बम इस्तेमाल करने की सम्भावना बढ़ जाती है।
बहरहाल यह जानना भी प्रसंगवश ज़रूरी है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत यदि पाकिस्तान से जंग करता है तो वह युद्ध के मैदान में कितना ताकतवर साबित होगा।
भारत के पास संख्या के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी सेना है। इसके तीन अंग हैं-थल सेना, वायु सेना और नौ सेना। कुछ फौजी हैं तेरह लाख तीन हज़ार इसके अलावा पाँच लाख पैंतीस हज़ार रिज़र्व सैनिक भी हैं। सबसे ज़्यादा तादाद है थल सेना के फौजियों की...यहाँ कोई ग्यारह लाख सक्रिय फौजी हैं। थल सेना में छत्तीस कॉम्बेट डिवीजन हैं और इस सेना की जान हैं टैंक। अभी करीब साड़े तीन हज़ार टैंक हैं जिसमें टी 90 सबसे नए हैं। एक टी 90 में तीन फौजी सवार हो सकते हैं और इसकी अधिकतम रफ्तार है 65 किलोमीटर प्रति घंटा।
भारत की थल सेना का भरोसेमन्द साथी अर्जुन टैंक भी रहा है..120 एमएम रायफल गन से लैस ये टैंक एक घंटे में 72 किलोमीटर की दूसरी तय कर सकते हैं।
टी 72 एम 1 टैंकों की तादद सबसे ज़्यादा है और रफ्तार के मामले में भी ये सबसे आगे हैं। ये एक घंटे में 80 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं। थल सेना के पास नई तकनीक से लैस कई तोपें भी हैं।
155 एम.एम.एफ.एच. 77 बी हाविट्जर यानी बोफोर्स तोपें कारगिल में सबसे ज़्यादा काम आई थीं। ये 24 से 30 किलोमीटर तक वार कर सकती हैं।
130 एम.एम.एम. 46 फील्ड गन की रेंज 27 किलोमीटर से भी ज़्यादा है। रॉकेट लांचरों में 122 एम.एम.बी.एम. 21 एम.आर.एल. भी शामिल हैं जिनकी रेंज 11 से 20 किलोमीटर तक है।
ये सब तो है ही..लेकिन भारत की सबसे बड़ी ताकत है मिसाइल क्षमता। ज़मीन पर वार करने वाली मिसाइल पृथ्वी से अधिकतम 1000 किलोग्राम का विस्फोटक ले जा सकती है। इसकी अधितम मारक क्षमता है 500 किलोमीटर। खास बात यह है कि दुश्मन के रडार भी इसका पता नहीं लगा पाते।
..अग्नि मिसाइल की मारक क्षमता 1500 से 2580 किलोमीटर तक है। ये 1000 किलोग्राम तक का विस्फोटक दुश्मन के इलाके में गिरा सकती है। ये दोनों मिसाइलें परमाणु बम भी ले जा सकती हैं।
वायुसेना में 1 लाख 50 हज़ार सक्रिय फौजी हैं। एयरफोर्स के पास आधुनिक लड़ाकू विमान हैं...हेलीकॉप्टर हैं और परिवहन विमान भी। लड़ाकू विमानों में सबसे नए हैं रूस से आई सुखोई।...ध्वनि से दुगुनी रफ्तार से उड़ने वाले ये विमान हवा में ही ईंधन भरा सकते हैं।
...रूस से ही आए मिग 29 भी ध्वनि से दो गुनी गति से उड़ सकते हैं ये विमान 30 एम.एम. सिंगल बैरल गन से लैस हैं।
...फ्रांस से आए मिराज 2000 की रफ्तार भी ध्वनि से दुगुनी है इनमें 125 राउण्ड वाली दो एम.एम. गन लगी हुई है।
...एयरफोर्स के पास हमलावर हेलीकॉप्टर भी हैं...एम.आई. 25/35 हेलीकॉप्टर में चार बैरल वाली 12.7 एम.एम. मशीनगन के साथ चार टैंक भेदी मिसाइलें भी लगाई जा सकती हैं। एम.आई.26 हेलीकॉप्टर 56 टन तक का माल ढो सकते हैं।
भारतीय सेना का तीसरा और सबसे छोटा अंग है नौसेना जिसमें 55 हज़ार सक्रिय सैनिक हैं।
नौसेना के पास विराट जैसा एयरक्राफ्ट कैरियर यानी विमान वाहक पोत है। इसमें 30 लड़ाकू विमान और 7 हेलीकॉप्टर आ सकते हैं..विराट की रफ्तार है 28 किला नॉट।
डिस्ट्रॉयर शिप राजपूत में 11 हेलीकॉप्टर हैं और ये टारपीडो, मिसाइल और मशीनगनों से लैस हैं।
नेवी के पास किलो क्लास जैसी पनडुब्बियाँ भी हैं जो पानी की सतह पर 10 नॉट और पानी के नीचे 20 नॉट की रफ्तार से दौड़ सकती हैं। मिसाइल और टारपीडो होने के अलावा इन पनडुब्बियों में समुद्र में बारूदी सुरंगें बिछाने की भी क्षमता है।
भारत के पास 13 लाख सक्रिय सैनिक हैं तो पाकिस्तान के पास सिर्फ 6 लाख। भारत की फौज बड़ी है तो इसका रक्षा खर्च भी बड़ा है। भारत का रक्षा बजट 13.6 अरब डॉलर है जब कि पाकिस्तान का बजट है 3.3 अरब डॉलर। भारत के साढ़े तीन हज़ार टैंकों के मुकाबले पाकिस्तान के पास 2,285 टैंक हैं। भारत के पास 36 कॉम्बेट डिवीजन हैं तो पाकिस्तान के पास 22। एयरफोर्स के मामले में भी भारत पाकिस्तान से काफी आगे है। पाकिस्तान के 40 हज़ार वायुसैनिकों के मुकाबले भारत के पास एक लाख चालीस हज़ार वायुसैनिक हैं। भारत के पास 730 लड़ाकू विमान हैं तो पाकिस्तान के पास आधे से भी कम यानी सिर्फ 353। लड़ाकू हेलीकॉप्टर तो पाकिस्तान के पास हैं ही नहीं जबकि भारत के पास 30 हथियारबन्द हेलीकॉप्टर हैं।
पाकिस्तान के नेवी में 22 हज़ार जवान हैं जबकि भारत के पास 55 हज़ार से भी ज़्यादा नौ सैनिक हैं। पाकिस्तान के पास एक भी एयरक्राफ्ट कैरियर नहीं है। भारत की 19 पनडुब्बियों के मुकाबले पाकिस्तान के पास 10 पनडुब्बियाँ हैं।
डिस्ट्रॉयर और फ्रिगेट्स के मामलें में दोनों देशों की ताकत लगभग बराबर है। भारत के पास 8 डिस्ट्रॉयर हैं और पाकिस्तान के पास 7।
पाकिस्तान के 8 फिग्रेट्स के मुकाबले भारत के पास 9 फिग्रेट्स हैं।
लेकिन मिसाइलों को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच काँटे की टक्कर है। भारत ने अपने अन्तरिक्ष कार्यक्रम के साथ मिसाइलें बनाई तो पाकिस्तान ने सीधे चीन और नार्थ कोरिया से मिसाइलें खरीदी। पाकिस्तान के पास 2300 किलोमीटर तक मार करने वाली गौरी मिसाइल है तो भारत के पास 1500 किलोमीटर रेंज वाली अग्नि। पाकिस्तान के पास 600 किलोमीटर तक मार करने वाली शाहीन मिसाइल हैं वहीं भारत के पास 250 किलोमीटर तक विस्फोटक गिराने वाली पृथ्वी मिसाइल।
पारम्परिक हथियारों के अलावा दोनों मुल्कों में टोही उपकरणों की भी जबरदस्त होड़ है। बगैर पायलट वाले विमान, आधुनिक रडार सिस्टम और सेटेलाइट तकनीक पर भारत और पाकिस्तान बड़े पैमाने पर खर्च कर रहे हैं। हालाँकि इनके बारे में जानकारी अक्सर गुप्त ही रखी जाती है। मगर यह जिक्र करना भी ज़रूरी है कि भारत के सामने एक बड़े युद्ध से ज़्यादा आए दिन होने वाली आतंकवादी वारदात ज़्यादा नुकसान पहुँचा सकती हैं। इन आतंकवादी हरकतों से न तो टी 90 टैंक निपट सकते हैं और न ही अग्नि मिसाइल। भारत के खिलाफ जंग छोड़ चुके आतंकवादियों से निपटने के लिए न सिर्फ खास फौजी इन्तजाम की ज़रूरत है बल्कि दूसरे देशों को भी साथ लेकर चलने की ज़रूरत है।
वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने ऐलान किया था कि अब उसकी लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है और जो उसका साथ नहीं देगा उसे आतंकवाद का हिमायती माना जाएगा। अमेरिका ने बिना किसी से कुछ पूछे फैसला लिया, दुश्मन तय किया, निशाने बनाए और अफगानिस्तान पर हमला बोल दिया। न कोई कूटनीतिक कवायद, न माफी की गुंजाइश और न किसी विरोध की फिक्र। सच तो यह है कि अमेरिकी हितों के आगे डिप्लोमेसी की कोई जगह नहीं। दूसरी ओर इजरायल बनाम फिलिस्तीन का उदाहरण हमारे सामने है जहाँ हम आत्मघाती हमले के बाद इजराइली टैंक फिलिस्तीनी इलाकों में घुसकर कहर ढाते हैं और डिप्लोमेसी ठंडे बस्ते में चली जाती है। अमेरिका और ब्रिटेन की नज़र में वहाँ फिलिस्तानी आतंकवाद है पर पाकिस्तान के आतंकवाद को लगातार नज़रअन्दाज किया जाता रहा है।
सवाल उठता है कि ऐसा क्यों है कि भारत और पाकिस्तान के तनाव को सिर्फ पुरानी रंजिश बताकर टाल दिया जाता है। आज भारत दुनिया से जिस तरह का समर्थन जुटाने की सफल कोशिश में हैं उस पर दुनिया ने क्यों नहीं सोचा, जब कश्मीर में सीमापार से दहशतगर्द घुसकर हिंसा और नरसंहार को अंजाम दे रहे थे।
आतंकवाद से आज दुनिया का लगभग हर देश प्रभावित है। 7 अक्टूबर, 2001 की रात जब अफगानिस्तान में आसमान से शोले बरसे तब शायद लोगों को लगा कि आतंकवाद के खिलाफ छिड़ी ये जंग इसके सफाए के बाद ही रुकेगी, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। अन्तर्राट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन या उसके संगठन अलकायदा के सदस्यों की खोज तो जारी है मगर आतंकवादियों के हौसले भी पस्त नहीं हुए हैं। लादेन ने अपने ताजा बयान में कहा है कि अमेरिका अगर तालिबान से समझौता कर ले तो बात बन सकती है, वरना पूरी दूनिया को भारी तबाही लिए तैयार रहना चाहिए।
उधर अमेरिका के एक समाचार एजेंसी को ऐसा वीडियो मिला है जिसमें उग्रवादी संगठन हमास के कार्यकर्ताओं को आत्मघाती हमले का प्रशिक्षण लेते दिखाया गया है। हमास पश्चिम एशिया का खतरनाक आतंकवादी संगठन है जो इजरायल में कई आत्मघाती हमले कर चुका है। इस वीडियो की शुरुआत में उस्ताद अपने शार्गिदों को यह बताता है कि इजरायल पर हमला करने वालों को जन्नत मिलेगी। इसमें आगे बताया गया है कि आत्मघाती हमले के लिए विस्फोटक कैसे तैयार किया जाए। इस विस्फोट के लिए लकड़ी का खोल, ताँबे के तार, टेस्ट ट्यूब नट और बॉल बियरिंग जैसे सामान स्थानीय तौर पर उपलब्ध कराए गए हैं। वहीं मुख्य विस्फोटक ट्राइ नाइट्रो ग्लिसरीन चोरी या तस्करी से मँगाया जाता है।
इजरायल की खुफिया एजैंसियों के मुताबिक हमास के पास बम बनाने की उम्दा तकनीक है। हमास के वीडियो में यह भी बताया गया है कि आत्मघाती हमलों के निशाने कौन हो सकते हैं। इस वीडियो टेप से यह बात साफ हो गई है कि आतंकवादी आज भी उतने ही शक्तिशाली और सक्रिय हैं, जितना तालिबान पर हुए अमेरिकी हमले के पहले थे।
ऐसा नहीं है कि 11 सितम्बर की घटना के पहले आतंकवाद नहीं था, यह ज़रूर था कि अमेरिका जैसे ताकतवर देश को आतंकवादियों ने अपना निशाना नहीं बनाया था। यह पुस्तक एक कोशिश है उन आतंकवादियों गुटों की पहचान की जो मानवता के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर आतंकवादी गुट दहशतगर्दी को बढ़ावा देने वाले मुट्ठीभर मुल्लों के हाथ की कठपुतली बन चुके हैं, और इसका सबसे अधिक शिकार बन रहे हैं भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक देशों में रहने वाले लोग।
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